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आ धू॒र्ष्व॑स्मै॒ दधा॒ताश्वा॒निन्द्रो॒ न व॒ज्री हिर॑ण्यबाहुः ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā dhūrṣv asmai dadhātāśvān indro na vajrī hiraṇyabāhuḥ ||

पद पाठ

आ। धू॒र्षु। अ॒स्मै॒। दधा॑त। अश्वा॑न्। इन्द्रः॑। न। व॒ज्री। हिर॑ण्यऽबाहुः ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:34» मन्त्र:4 | अष्टक:5» अध्याय:3» वर्ग:25» मन्त्र:4 | मण्डल:7» अनुवाक:3» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे कन्या विद्या के लिये क्या यत्न करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे कन्याओ ! तुम (अस्मै) इस विद्याग्रहण करने के लिये (धूर्षु) रथों के आधार धुरियों में (अश्वान्) घोड़े और (हिरण्यबाहुः) जिसकी भुजाओं में दान के लिये हिरण्य विद्यमान उस (वज्री) शस्त्र अस्त्रों से युक्त (इन्द्रः) सूर्यतुल्य राजा के (न) समान ब्रह्मचर्य को (आ, दधात) अच्छे प्रकार धारण करो ॥४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जैसे सारथी घोड़ों को रथ में जो़ड़ कर नियम से चलाता है, वैसे कन्या आत्मा अन्तःकरण और इन्द्रियों को विद्या की प्राप्ति से व्यवहार में निरन्तर जोड़ कर नियम से चलावें ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्ताः कन्या विद्यायै कं यत्नं कुर्य्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे कन्या ! यूयमस्मै धूर्ष्वश्वान् हिरण्यबाहुर्वज्रीन्द्रो न ब्रह्मचर्यमा दधात ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) (धूर्षु) रथाधारेषु (अस्मै) विद्याग्रहणाय (दधात) (अश्वान्) शीघ्रगामितुरङ्गान् (इन्द्रः) सूर्य इव राजा (न) इव (वज्री) शस्त्रास्त्रयुक्तः (हिरण्यबाहुः) हिरण्यं बाह्वोर्दानाय यस्य सः ॥४॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । यथा सारथिरश्वान् रथे संयोज्य नियमेन चालयति तथा कन्या आत्मान्तःकरणेन्द्रियाणि विद्याप्रापणे व्यवहारे नियोज्य नियमेन चालयन्तु ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसा सारथी घोड्यांना रथाला जोडून नियमपूर्वक चालवितो तसे कन्यांनी आत्मा, अंतःकरण व इंद्रियाद्वारे विद्येची प्राप्ती करून त्यांना व्यवहारात नियमपूर्वक चालवावे. ॥ ४ ॥